पत्नी के अलावा इस 1 स्त्री के साथ संबंध रखना पाप नहीं होता है कहते है यमराज

पत्नी के अलावा इस एक स्त्री से संबंध रखना पाप नहीं होता है। शास्त्रों के अनुसार ,कोई भी पुरुष पत्नी के अलावा ,इस एक स्त्री से शारीरिक संबंध स्थापित कर सकता है।  दोस्तों एक बार नारद मुनि नारायण खुद नारायण का जाप करते हुए, वायु मार्ग से यमलोक पहुंच जाते हैं।  यमलोक के देवता यमराज विशाल काय सिंहासन पर बैठे होते हैं।  उनके पास चित्रगुप्त जी भी बैठे हुए थे।  तभी नारद जी यमलोक पहुंच जाते हैं ।

नारद जी को आता देख यमराज उनका स्वागत करते हैं । और उन्हें प्रणाम करते है, और कहते है।  हे नारद जी आपके  आने से सम्पूर्ण से यम नगरी धन्य हो गई है।  देवर्षि नारद कहते हैं । हे मृत्यु और न्याय के देवता आपको मेरा प्रणाम है । कृपया करके मेरा परिणाम स्वीकार करें। फिर यमराज जी कहते हैं। हे नारद आज बड़े युगों के बाद आप यमलोक पधारे हैं । अवश्य ही कोई महत्त्वपूर्ण कारण होगा।  कृपया आप हमें कारण बताने की कृपा करें।  कि आप किस प्रयोजन से आज यमपुरी आए हैं । तब नारद जी कहते हैं। हे धर्मराज आप मृत्यु व न्याय के देवता हैं। तीनों लोकों के प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार दंड देने का कार्य आप करते हैं। आपके पास समस्त प्राणियों का लेखा झोखा रखा हुआ है।

 पापी मनुष्यों को आप नरक में और पुण्यवान मनुष्य को आप स्वर्ग में भेजते हैं । इसीलिए आपको मनुष्यों के सभी पाप और पुण्य कर्मों का ज्ञान है । मैं आपके पास एक विचित्र प्रश्न लेकर आया हूं । कृपया करके आप मेरे इस प्रश्न का उत्तर दीजिये ।  फिर यमराज जी कहते हैं । हे नारायण आप सत्य कहते हैं । हमारे पास तीनों लोकों के प्राणियों का लेखा जोखा रखा हुआ है। क्योंकि प्रभु ने हमें यही कार्य सौंपा है। हम प्रभु के आदेश से ही मनुष्य के पाप और पुण्य कर्मों के आधार पर उन्हें दंड देते हैं । हे देवर्षि आपके मन में जो भी प्रश्न है । आप बिना संकोच के पूछें।  

पत्नी के अलावा इस 1 स्त्री के साथ संबंध रखना पाप नहीं होता है कहते है यमराज

हम अपने सामर्थ्य के अनुसार उनका समाधान करने का प्रयास करेंगे।  तब नारदमुनी  कहते हैं । हे यमराज शास्त्र कहते हैं ,कि एक पुरुष को केवल एक ही स्त्री से विवाह करना चाहिए, व  एक ही स्त्री से संबंध बनाना चाहिए। किंतु मैंने पृथ्वीलोक पर यह भी देखा है, कि कुछ मनुष्य अनेक विवाह करते हैं । अनेक स्त्रियों से संबंध रखते हैं । क्या यह पाप नहीं है।  क्या ऐसे मनुष्यों को नरक में डाला जाता है । इस पर शास्त्र क्या कहते हैं ,क्या कोई मनुष्य अनेक स्त्रियों से विवाह कर सकता है।  कृपया आप मेरी इस संका को दूर करें।  यमराज कहने लगते हैं।  

हे देवर्षि आपने समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए उचित ही प्रश्न किया है। संसार में मनुष्य एक से अधिक विवाह कर सकता है । या नहीं, इसका उत्तर देने से पूर्व ,मैं आपको एक कथा सुनाता हूं । इस महान कथा में आपको सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे । इसीलिए आप इस कथा को ध्यान से जरूर सुने । जो भी इस कथा को ध्यान से सुनता है। मैं उसके 32 अपराध माफ करता हूं ।

 फिर नारद जी कहते हैं । हे यमराज जी आप उस कथा को अवश्य कहिए । मैं उसे ध्यान से पूरा सुनूंगा। तब यमराज जी नारद जी को वह महान कथा सुनाते हैं । प्राचीन काल की बात है मध्य देश में एक अत्यंत शोभायमान नगरी थी ,उस नगरी के एक अत्यंत गुणवान बलवान राजा थे । जिनका नाम था यक्षपाल महाराज यक्षपाल एक न्याय प्रिय राजा थे।  उनकी प्रजा उनके न्याय से अत्यंत संतुष्ट रहा करती थी।  राजा भी अपनी प्रजा अच्छी तरह से देखभाल करते हैं । राजा प्रजा की सभी जरूरतों का अच्छी तरह से ध्यान रखते थे । महाराज की तुलसी नाम की पत्नी थी।

 जो अत्यंत सुंदर गुणवान चरित्रवान और पतिव्रता नारी थी महाराज धर्मपाल और रानी तुलसी बहुत ही दयालु स्वभाव के थे । वे हर प्रकार के यज्ञ दान धर्म तथा अनुष्ठान किया करते थे । उनके साम्राज्य में सब कुछ था।  किंतु केवल एक कारण से महाराज महारानी और प्रजा दुखी रहते थे । महाराज को कोई संतान नहीं थी, जिससे महाराज दुखी और चिंता में रहते थे। प्रजा को भी महाराज की ऐसी दशा देखी नहीं जा रही थी । कितने ही प्रयास करने पर भी महाराज को कोई संतान नहीं हो रही थी। महाराज ने अनेक वैद्य बुलाए अनेक पुत्र प्राप्ति के उपाय किए।  दान धर्म किया व्रत किए किंतु उन्हें किसी भी उपाय से संतुष्टि नहीं मिली। फिर एक दिन प्रजा जन महाराज के पास आते हैं , और कहते हैं,  हे महाराज यक्षपाल  आप पुत्र प्राप्ति के लिए दूसरा विवाह करें।  किंतु महाराज अपनी प्रजा की बात से सहमत नहीं होते हैं ।

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महाराज रानी तुलसी से बहुत प्रेम करते थे । इसीलिए वे अपनी पत्नी का दिल नहीं दुखाना चाहते थे।  तथा महाराज शास्त्रों का भी ज्ञान रखते थे। कि एक पुरुष को केवल एक ही स्त्री के प्रति एक निष्ठ रहना चाहिए।  एक पत्नी के होते हुए । कभी दूसरी स्त्री के पास नहीं जाना चाहिए । जिस प्रकार से एक मादा पशु के साथ दो नर पशु नहीं रह सकते।  ठीक उसी प्रकार से एक पुरुष के साथ दो दो स्त्रिया कभी सुखी नहीं रह सकती । जो पुरुष एक पत्नी होते हुए भी दूसरी स्त्री से संबंध रखता है।  वह घोर पाप करता है, और नरक में ही गिरता है । इसी कारण से महाराज यक्षपाल  दूसरा विवाह नहीं करना चाहते थे । फिर प्रजा जन महारानी के पास जाकर उनसे आग्रह करते हैं । कि वे महाराज को दूसरा विवाह करने के लिए मनाए।

तब रानी तुलसी भी प्रजा के दुख समझती है। और महाराज के पास आकर कहने लगती है।  हे स्वामी आप कृपया दूसरा विवाह कर लीजिए। हमारे राज्य को भविष्य में एक राजा की आवश्यकता पड़ सकती है । फिर महाराज रानी को भी मना करते हैं।  और कहते हैं, हे प्रिय यदि मैं दूसरा विवाह भी कर लूंगा तो , मैं पापका भागी बन जाऊंगा । मुझे नरक में ही जाना पड़ेगा और तुम बताओ क्या तुम मेरे दूसरे विवाह से खुश रह पाओगी । तब रानी कहती है , हे स्वामी आपकी खुशी में ही मेरी खुशी है।

 मैं मेरी सौतन को अपनी बहन मानकर प्यार दूंगी ,कृपया आप संकोच ना करें । मुझे इससे क्षण मात्र भी दुख नहीं होगा । मैं आपको विवाह के लिए सहमति देती हूं।  तब महाराज कहते हैं । हे देवी किंतु मुझे उस पाप से कौन बचाएगा।  जो एक स्त्री के होते हुए भी दूसरी स्त्री के साथ संबंध रखने से मिलता है ।

 इस पाप से कोई मुक्ति नहीं है, मैं ऐसा घोर अनर्थ नहीं करना चाहता । उधर स्वर्ग लोक से महाराज के सभी पूर्वज इस घटनाक्रम को देख रहे होते हैं।  वे अपने पुत्र के ऐसे व्यवहार से अत्यंत दुखी हो जाते हैं । यदि महाराज को नहीं होगा । तो कुल का विनाश हो जाएगा ,इसी भय से सभी पूर्वज बहुत दुखी हो जाते हैं।  फिर एक दिन सभी पूर्वज महाराज के सपने में आकर उन्हें दर्शन देते हैं,  और कहते हैं,  हे पुत्र तुम्हारे कारण हमारी दुर्गति हो रही है । हमारे कुल का विनाश हो रहा है,  तब महाराज अपने पूर्वजों से कहते हैं।  हे महात्माओं मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है।  जो आप सभी इतने दुखी हुए हैं । आपकी आत्मा की शांति के लिए,  जो भी उपाय हो, वह मैं अवश्य ही करूंगा ।

तभी वे पूर्वज कहने लगते हैं।  हे पुत्र हमारी मुक्ति का एक ही उपाय है,  वह है तुम्हारी संतान , यदि तुम पुत्र को जन्म नहीं दोगे । तो तुम्हारे साथ-साथ हमें भी नरक में जाना पड़ेगा। हमारा संपूर्ण कुल और वंश नष्ट हो जाएगा। इसीलिए हे पुत्र हम तुमसे विनती करते हैं। कि तुम दूसरा विवाह करो ,पुत्र के बिना मनुष्य को सद्गति प्राप्त नहीं होती है। पुत्र ही अपने माता-पिता का उद्धार करता है । उन्हें मोक्ष दिलाता है, जब वह श्राद्ध करता है ,तो हमारे पाप नष्ट हो जाते हैं । जब वह पृथ्वी लोक पर दान धर्म करता है । तो हमें स्वर्ग लोक में भोजन की प्राप्ति होती है।  इसीलिए हे पुत्र तुम शीघ्र ही पुत्र की प्राप्ति के लिए कोई उपाय करो। अपने पित्रों की बात सुनकर भी महाराज दूसरा विवाह करने के लिए तैयार नहीं होते हैं । फिर सभी पित्र गण दुखी होकर यमराज के पास जाते हैं , और उनसे विनती करते हुए कहते हैं।  हे धर्मराज कृपया हमारे कुल की रक्षा कीजिए।  हमारे पुत्र की कोई संतान नहीं है । और संतान के बिना हम रा कुल नष्ट हो जाएगा।

कृपया आप हमारे पुत्र को दूसरा विवाह करने की आज्ञा दे।  फिर यमराज कहते हैं हे महात्माओं मैं अवश्य ही तुम्हारे पुत्र को समझाऊगा ,और उसे पुत्र प्राप्त करने के लिए प्रेरित करूंगा।  ऐसा कहकर यमराज पृथ्वी लोक पर आते हैं, और एक साधु का रूप धारण करके महाराज यक्षपाल के दरबार में जाते हैं।  उन साधु को देखकर महाराज यक्षपाल अत्यंत प्रसन्न होते हैं । और उनका आदर सत्कार करते हैं।  फिर उनसे पूछते हैं, हे महात्मा आप कौन हैं । किस प्रयोजन से आप हमारे इस राज्य में पधारे हैं।  आपके मुख मंडल का तेज देखकर यह प्रतीत होता है।  कि आप अवश्य ही कोई बड़े तपस्वी हैं।

 तब वह साधु उस राजा से कहते हैं । हे वत्स मैं साक्षात यमराज हूं। तुम्हारे पूर्वजों के द्वारा प्रार्थना करने पर ही मैं स्वयं तुमसे मिलने के लिए आया हूं । वह साधु महाराज से कहते हैं।  हे वत्स तुमने अपने पूर्वजों को रुष्ट कर दिया है । जिससे तुम्हारा सारा साम्राज्य नष्ट हो जाएगा।  पुत्र के बिना तुम्हारी दुर्गति हो जाएगी।  तुम्हें कभी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी । शास्त्र कहते हैं ,कि मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति के लिए पुत्र को जन्म अवश्य देना चाहिए । फिर महाराज कहते हैं।  

हे धर्मराज मैं विवश हूं,  मैं दूसरा विवाह करके पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता । इससे अच्छा है, कि मैं पुत्र हीन होकर जीवन व्यतित करूं । यमराज कहते हैं।  हे वत्स तुम्हारे न्याय प्रिय आचरण से और अपनी पत्नी के प्रति एक निष्ठा को देखकर मैं अत्यंत प्रसन्न हूं,  किंतु हे यक्षपल एक मनुष्य दूसरा विवाह अवश्य कर सकता है । इसमें कोई पाप नहीं है यदि किसी पुरुष की पत्नी उसके दूसरे विवाह के लिए सहमति देती है।  तो वह पुरुष दूसरा विवाह निश्चित ही कर सकता है।

 इसमें कोई पाप नहीं है । शास्त्र कहते हैं ,कि यदि एक पत्नी से पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है।  और उसकी पत्नी उसे दूसरा विवाह करने की अनुमति देती है । तो उस दूसरा विवाह करने में संकोच नहीं करना चाहिए । साक्षात धर्मराज के द्वारा ऐसे वचन सुनकर महाराज अति प्रसन्न हो जाते हैं । और यमराज को धन्यवाद देते हैं । फिर यमराज उस स्थान से अंतर्ध्यान हो जाते हैं।  महाराज यक्षपाल अपनी पत्नी तुलसी के पास जाते हैं । और उससे दूसरा विवाह करने की अनुमति मांगते हैं ।

तो महारानी तुलसी उन्हें दूसरा विवाह करने की अनुमति दे देती है।  तब महाराज दूसरी स्त्री से विवाह कर लेते हैं। जिससे उन्हें सुंदर पुत्र रत्न कीम प्राप्ति होती है । और उधर स्वर्ग लोक में सभी पूर्वज भी आनंदित हो जाते हैं । और यमराज का बार-बार धन्यवाद करते हैं।  तो दोस्तों इस प्रकार से धर्मराज ने नारद जी को स्त्री और पुरुष के विवाह और आचरण  संबंधी महत्त्वपूर्ण ज्ञान दिया है।  आपको यह कथा कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं। जानकारी अच्छी लगी तो, इस पोस्ट की लिंक अपने दोस्तों के साथ सांझा करें ।

ध्नयवाद दोस्तों ।

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