चिड़िया पर शायरी +50 , Chidiya Shayari Hindi

जो सुर्योदय से पह्ले उठ जाते है ।

अपने मोहक चहक से हमे जागते है ,

करके अपनी नींद खराब ,

वो हमारी सुबह सुनहरी बनाते है ।।

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आजकल के घरों में पेड़ की जगह पिजरे मिलते है

नकली गुलदस्ते में असली फूल कहाँ खिलते है ।

मिलते नहीं है दिल लोगो के, फिर भी जमाने में

फूलों के गुलदस्ते में कांटे पलते है

फिर कहते है लोग, इस जमने में अच्छे लोग नहीं मिलते है ॥

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चहकती चंद चिड़ियाओं का बसेरा था एक पेड़ पर

मेरे घर एक पेड़ था और एक घर था  पेड़ पर,

मैंने ये सोचकर लोगो को माफ कर दिया ए दोस्त

जैसे मेरा घर दरिया में,

 उसी तरह उसी का घर है जिम्मे की मेड पर ।।

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अब चुपचाप शाम आती है

पहले चिड़ियाओं का शोर होता था ,

अब लूट गया मेरा खवाबों का मंजर

हर एक शाम एक आम आती है ।।

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कर मेहनत आते बढ़ दुनिया की सारी ताकत छीपी है होसले में ,

बिना मेहनत किए चिड़िया को भी खाना नहीं मिलता घोसले में ॥

चिड़िया पर शायरी

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घर में चहकने वाली चिड़िया फिर से लौट आओ

अपने घर को देखों हालत देखो फिर से लौट आओ

गई थी कुछ दिनों का कहकर

वर्षों बीत गए है ,एक बार मुझे बस मिलने लौट आओ ।।

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तिमिर को तीर से हो कर परों से काटती चिड़िया

बसेरा खुद का शाखा पर रखकर घर को संभालती चिड़िया

मूषिबत आप आए तो चहककर सचेत करती चिड़िया ,

खुद रहती तीनके के घर में ,गहर आपका संभालती चिड़िया ।।

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घरौंदा बन गया परदेश जब चिड़िया उड़ चली

नए सफर में नया घोसला नया होगा देश ,

छोड़कर अपनों को नए देश चल पड़ी ,

हमे घर में अकेला छोड़ अपना घर बसने चल पड़ी ॥

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पेड़ सूखा तो चिड़िया ने बदला घोसला अपना

मेहनत की है तो रख होलसा , तू पाएगा मुकाम अपना ॥

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तुम हमरे घर की नन्ही चिड़िया हो बिटिया

आज नहीं तो कल ,तू उड जाएगी रे बिटिया ॥

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बेटी चिड़िया नहीं बाज है तू ,

इस दुनिया का सरताज है तु,

रोकेगा कौन तुझे उड़ने से

बिटिया उड़ने में मिराज है तु॥

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अपने पंख पसार के उड़ जा चिड़िया आज

उड़ने से ही चील है , उड़ने से ही बाज ॥

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पैरो का कोई दोष नही

 खुद को भी कोई होस नहीं

मन मे उड़ने की आंधी है

अपनो ने रस्सी बांधी है ॥

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हूनर मुझमें भी था उड़ने का ,

मगर जिम्मेदारियों ने मेरे पंखों को बांध दिया

आजाद आसमान में हम भी उड़ सकते थे ,

हमने परिवार की आजादी के लिए खुद को बांध दिया॥

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चिड़िया चढ़ी गर्व से एंठी

उड़कर साइकिल के हेंडल पर बैठी

बोली में भी सैर करूंगी

गड्ढों से अब नही डरूँगी

मजा नहीं अब उड़ने में अता है

अब जोदूंगी साइकिल के पैदल से नाता ॥

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मैं हालातों में इस कदर बंधा हुआ हूं की कुछ कर नहीं सकता

हालतों से लड़ नही सकता और उड़ भी नही सकता ॥

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ना किसी के अभाव में जियो

ना किसी के प्रभाव में जियो

ये जिंदगी है जनाब आपकी

इसे अपने हिसाब से जीयो ॥

चिड़िया पर शायरी

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कैद वही नहीं जो जेल में जिया है कैद वह भी है

 जिसने जिम्मेदारी को अपने सर पर लिया है॥

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इस दुनिया में कुछ भी बेकार नहीं जाता ,

एक तिनका भी चिड़िया को घासल बना जाता

लोग कहते है नकारा निकम्मा है तो

जिस दिन चमके किस्मत ये निकमा भी काम का बन जाता ॥

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मंदिर में दाना खाकर चिड़िया

मस्जिद में पानी पीती है।

सुनने में आया है राधा की चुनरिया

कोई सलमा बेगम सीती है॥

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यहा हर कोई मस्त है अपने ही हाल में।

इसलिए हमने खुद को कैद कर लिया है अपने ही मायाजाल मे ।।

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हमारे शोर में उंकी आवाज खो रही है

हल्की से है वो जहां पे अब वो बोझ हो रही है॥

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मजबूरी जो हर सपने को बांध देती है

सपने पूरे नहीं होते ज़िम्मेदारी बांध देती है

हम भी पूरे होते अपने मन के

पर मन को मजबूरी बांध देती है ॥

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यूं ही अपना मिजाज चिड़चिड़ा न कीजिये

कोई बात है तो खुलकर बताओ, दिल को बड़ा कीजिये ॥

bird shayari

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न बांधो इन परिंदो को अपने हुए तो लौट आएंगे ।

मत दो इन्हे गली क्यों अगर पने हुए तो हमे सताएंगे

कौन रोता है गैर के लिए इस दुनिया में

दर्द तभी होता है जब पेन पराए होते है ॥

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बिना जमीन के इस जहा में आसमान से कूदेंगे तो आसमान में ही भटक जायेंगे

बिना जमीन के घोंसले के लिए टहनी कहा से लायेंगे।

 याद आएंगे मेरी महबूबा की आंखे तो किसको आवाज लगाएंगे

श्री नारायण ने मुझे इस जहा में छोड़ा है आगे का सफर में नारायण ही ले जायेंगे ॥

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दुनिया भोली भाली बनती है ये नहीं है इतनी सीधी

पिजरे में कैद चिड़िया अब भी आसमा को तक रही है ,

की दुनिया बेशर्म हो गई है या जिद्दी ॥

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अगर मेरे कैद होने से मेरे आजाद होते है तो ये क़ैदख़ाना मुझे काबुल है ।

मेरे कैद रहने से मेरे घर वाला को खुशी मिले तो ये गुलामी मुझे काबुल है ,

जाते है विदेश में नौकरी करने किसी के नौकर बनकर

घर वाले पूछते है तो कहते है , मजे में है ज़िंदगी दिल में सकूँन है।।

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उन्हे क्या पता मैंने कई साल अपनो को खोया है । 

हर दिन याद करके मेरा दिल रोया है ।।

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जरूरत पड़ने पर चिड़िया भी बना डालती है अपना घोसला

तू भी मंजिल पाएगा, दिल में मुकाम और दिल में रख होसला ॥

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बंधन में बंद गए है , जैसे बंदे पंख हमारे ,

 उड़ना तो बहुत चाहा पर बंदे हुए है पंख है मरे

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सूखी टहनी तनहा चिड़िया फीका चाँद हमारा है ।

जीने की चाह नहीं , पर अपनों के लिए जीना गवारा है ।

चाह नहीं बिलकुल जीने की बुलकुल फीका नजारा है ।

फिर भी जी रहे है , क्योकि अभी जिंदा चाँद हमारा है ॥

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देने आए थे हमे सकून पर काटकर चले गए

प्यार के बातों के लिए बुलाया था उन्हे

वो डांटकर चले गए।

बुलाया था प्यार का डॉक्टर

पर वो हमारा मरहम नापकर चले गए ।।

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बिना जमीं के इस जहान में आसमान से कुदेंगे तो आसमान से ही टकराएं

गेगे बांध लेता हूं इन कमबख्त परों को ,

 क्योंकि जमाना कहता है कि उनके बिना तो हम उड़ ही नहीं पाएंगे ।।

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जनाब पालने को तो में भी प्यार से पाला हूँ

ब करना चाहता हूँ माँ बाप के लिए जमी आसमाँ एक

क्या करूँ कर ना सका कुछ क्योकि जीमेदरियां  अनेक

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ये जमाना ऐसा है जनाब उड़ जाओ तो पंख बंद कर देता है

न उड़े तो गुलाम होने का ताना देता है।

क्या बताऊँ ए मेरे रब मन करता है उड़ पर जमीर बार बार मना कर देता है ॥ 

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लोग आये थे मेरे पास कह रहे थे उन्हे आसमान में उड़ना है

बिना पंख खोले उन्हे आसमान में उड़ना है।

चाहते है वो दुनिया को अपना बनाना

पर उन्हे दुनिया को पाना है और अपनो को बांचना है ।।

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दुनिया का ये दस्तूर कभी पूरा नहीं होता

बिना पंख खोले उड़ने का सपना पूरा नहीं होता॥

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नीचे से जमीन और ऊपर से आसमा दे रहे है ताने जनाब

हम भी जीव है हमे भी उड़ना है अब तो कोई खो दो बने जनाब ॥

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आए थे वो यही उम्मीदों से की मे भी भरूँगा एक ऊंची सी उड़ान सितारों के पार

पर क्या बताऊँ ए दोस्तों जालिम ने कर दिया मेरे तीर दिल के पार ॥

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जितना मुक़ाबला कर सकता था उतना कर लूँगा

किसी का गुलाम नहीं रहूँगा

बेहतर है एसी ज़िंदगी जीने से

किसी का कुत्ता बनकर ज़िंदगी काट लूँगा॥

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आया था तो यही उम्मीदों से की में भी भरूँगा एक ऊंची सी उड़ान सितारों के पर ,

पर क्या बौत्न ए दोस्तो जालिम जमाने ने इस नाचीज के पंख काट दिये॥

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गुलाम होने से अच्छा है की खुद की जान ले लूँ

विदा होने से पहले तेरे अरमान ले लूँ

बाद में चली जाए चाहे मेरे जान

जाने से पहले मेरे जान थोड़ा इंतहाँन ले लूँ ॥

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क्या गुनाह किया था मेरे जालिम तूने मुझे केद कर दिया ,

चाहता रहा मे और वो हस्ता रहा

मेरे जनाजे पर चलती रही ,

उजड़ता रहा मेरा घर और उसका बस्ता रहा।

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नीचे खाई ऊपर आसमा सपनों का

खजाना लिए आया था दुनिया में दुर्भाग्य ,

तो देखो बंधे है पंख जाऊन तो जाऊ कहाँ ॥

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ए जमाने के लोगों तुमने मेरे पंख तो बांध दिये

मेरे रूर को कैसे बाँधोगे

उड़ जाऊंगा चीरता हूँ इन कालें बादलों को ,

दिल में उथे हुए सरूर को कैसे बाधोंगे॥

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आया था ठो यही उम्मीदों से की

भरूँगा एक ऊंची सी उड़ान सितारों के पार,

पर क्या बताऊँ ए दोस्तो जालिम जमाने ने

इस नाचीज के पंख ही बांध दिये ॥

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क्या गुनाह था मेरा जालिम

तूने मुझे केद कर दिया,

आजादी के लिए में चिल्लाता रहा।

तूने धोका दिया और दिल में छेड़ कर दिया॥

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