पंख कटे परिंदों से संबन्धित शायरी Parinda shayari collection 130+
कि काट देते हैं पक्षी अपने वो पंख,
जिस पंख ने उसे उड़ान दी है ।
और लोग बेघर कर देते है,
उस मां बाप को, जिसने उसे इस जग में स्थान दी है।।
उड़ना तो हम भी खूब चाहते हैं जनाब….
लेकिन उड़ नहीं पाते है।
पीछे मुड़कर देखते है , तो बूढ़े माता-पिता नजर आते है ।
छोडकर हम उन्हे हम भी उड़ जाते ,
लेकिन जनत में हम ऊपर वाले को क्या मुंह दिखाते ॥
सब अपने दिल का दर्द दबाये बैठें है,
इतनी ही उम्र में बड़े धोखे खाये बैठे है,
हम उम्मेद उससे लगा बैठे,
जो प्यार में खुद धोका खाये बैठे है॥
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पंख लग गए इंसानों को,
अब हमारी जरूरत कहा आसमानों को,
जो हमे प्यार के बदले प्यार ना दे,
आग लगे ऐसे जमाने को॥
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मंजिल उन्हीं को मिलती है,
जिनके सपनों में जान होती है,
पंख से कुछ नहीं होता,
हौसलों से ही उड़ान होती है॥
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खुद ही थामे बैठा हूं औजार अपनी बर्बादी का,
काट दू पंख अपने या खिचू ढोर आजादी का,
जिसने प्यार में धोका दिया है मुझको,
नाम मत लो उस सहजादी का॥
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इस नफरती दुनिया ने दिल को,
दो टुकड़ों में बांट दिया।
कहीं दूर तलक न उड़ जाऊं,
मैंने खुद के परों को काट दिया।।
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रकीबों की महफिल में आ के बैठा हूँ,
अपना ही घर जला के बैठा हूँ।
बेबस हूँ अब मैं उड़ भी नहीं सकता,
अपने पंखों पे कैंची चला के बैठा हूँ।।
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पंखों को काट कर भी उड़ने का ख्वाब रखते हैं,
हम अपने दर्द का खुद ही जवाब रखते हैं।
हमे दुसदों के दिल से खेलने का शोक नही है ।
इसलिए हम खुद से प्यार रखते है ॥
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आज़ादी से डरते हैं या बंधन से प्यार है,
हम प्यार कर बैठे दिल एक होशियार से ।
हमे की पता था , को मेरे पर काट देंगे।
अपनी प्यार की धार से॥
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मंजिल उन्हीं को मिलती हैं ,
जिनके सपनों में जान होती हैं ,
पंख से कुछ नही होता होसलो से ही उड़ान होती हैं ॥
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जिनकी जैसी सोच वो वैसी कहानी रखता है।
कोई परिंदों के लिए बंदूक तो कोई पानी रखता है॥
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उड़ने दो उन्मुक्त गगन में पंख मेरे ना काटो तुम…
उड़ने दो उन्मुक्त गगन में पंख मेरे ना काटो तुम..
बहने दो मदमस्त पवन में गति मेरी ना रोको तुम,
इस धरती से उस अम्बर तक पंख मुझे फैलाने दो
छू लेने दो चाँद मुझे भी मेरे स्वप्न ना तोड़ो तुम,
निराधार क्यूँ कहते हो मुझको मैं जीवन का आधार हूँ नारी का वजूद निराला है
ये दुनिया को बतलाने दो जीने दो मुझको भी खुलकर पिंजरे में ना बाँधो तुम,
अभिशाप क्यूँ कहते हो मुझको मैं खुद में एक वरदान हूँ मिलता है ,
क़िस्मत वाले को मैं वो कन्यादान हूँ प्रेम से अपनाओ मुझको ऐसे ना ठुकराओ तुम,
मैं भी तो एक मानव ही हूँ अपने दिल को ये समझाओ तुम ,
उड़ने दो उन्मुक्त गगन में पंख मेरे ना काटो तुम॥
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जिम्मेदारीयों ने अपनों से दूर किया..
सपनों को पाने के लिए,
हमे शोक नहीं था अपनों से दूर होने का ,
अपनों ने ही मजबूर किया है अपनो को प्यार पाने के लिए ॥
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वो खुशी से रह पाये इसलिए हमने खुद को उनसे दूर किया ,
कभी उड़ा करते थे हम भी इस उन्मुक्त गगन में..
पर कुछ मजबूरियों नें.. पंख काटने पर मजबूर किया ॥
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मगर वक्त हर ज़ख्म को भर देता है,
जो टूटता है, वही फिर से संवार देता है।।
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एक दिन यही परिंदा फिर से पंख फैलाएगा,
अपने हौसले से आसमान तक जाएगा।
क्या देखती हो लाचारी मेरी,
एक दिन यही परिंदा शिखर तक जाएगा ।।
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पंख कटने का किस्सा ना होता ,
अगर चोच मे कैची का हिस्सा ना होता ॥
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चीर दिय जमाने ने पंख अपनी जरूरतों के हिसाब से।
देखो केंची भी रंग गई लहू के रिसाव से॥
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समझ कर कमज़ोर खुद को न काट अपने पंखों को
मेहनत का रंग एक दिन ज़रूर लाएगा,
रख हौसला कर हिम्मत
तू भी एक दिन आसमानों में नज़र आएगा।।
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होता है अत्याचार महिलाओं पर, सारा समाज मोंन होता है ,
दुःख होता हैं आँखें नम और दिल रोता है,
अगर आवाज उठाए महिला इस समाज में,
पढ़े लिखे समाज में महिलाओं का यही हाल होता हैं॥
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मेरी भी थी चाहत उड़ान भरने की ,
कुछ पाने कुछ बड़ा करने की..
व्यस्त हो गई जमाने की भाग दौड़ में ,
अभी फुर्सत नहीं है मरने की॥
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सबकी अपनी अपनी कहानी होती हैं।
वो ऐसा है, वो वैसा हैं,कौन जाने कौन कैसा है,
इतना ना किसी की जिंदगी में झांका करो।
दूसरों पर उंगली उठाने से पहले खुद को उस जगह पर रख कर आका करो।
सबकी अपनी अपनी जिंदगी और अपनी अपनी कहानी है।
किसी के होठों पर मुस्कान तो किसी की आंखों में पानी हैं।।
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त्याग के बिना कुछ भी संभव नहीं
क्योंकि एक सांस लेने के लिए पहली सांस छोड़ती है ।
कभी कभी दूसरों को जिंदगी देने के लिए,
खुद को जिंदगी छोडनी पड़ती है।।
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दिल पे क्या गुजरी ये अनजान क्या जाने
दर्द किसे कहते है ये बेजान क्या जाने,
हवा में तबाह हो गया घर जिस परिंदे का दर्द
उस परिंदे का ये तूफान क्या जाने॥
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कैंची के निशान से, उड़ान का ख्वाब टूटा,
फिर भी आशा की किरण, मन में जलती रही
कई बार सोचा छोड़ दूँ ज़िंदगी,
की थी कौशिश मरने की, लेकिन फिर भी सांसें चलती रही॥
कीसी पेड कटने का किस्सा ना होता,
अगर कुल्हाडी के पिछे पेड का हिस्सा ना होता ॥
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ऊपर वाले ने पंख तो दिया,
लेकिन समाज वालों ने उड़ने नहीं दिया
क्या करू ए खुदा आप के इस पंख का ,
इसलिए मैंने इसे तोड़ दिया ।।
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अर्ज किया है समाज की तानों के डर से अपने पंख तोड़ देती हैं ।
लगा ना दे दाग हमारे दामन पर ये समाज, इसलिए ये मुस्कुराना छोड़ देती हैं ।।
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हमारे हौसले बड़े हैं मुर्शद, हम सब कुछ कर दिखाएंगे।
अपने पंख कटेंगे नहीं समाज के डर से ,
इन्हीं के सहारे आसमान के पार जाएंगे
घर की कुछ जिम्मेदारियां उठाएं बैठे है भाई डर लगता है
अगर छोड़ दूं तो सब बिखर न जाएं मेरा सब कुछ,
मेरे दोस्त व दुश्मन मेरे मरने की घात लगाए बैठे है ,
मरने के बाद क्या होगा मेरे परिवार का ,यही सोचकर डर लगता है॥
दुसरो के दर्द को मरहम लगाए बैठे हैं ,
जब हम पर दर्द आया तों अपनें ही मुंह बनाएं बेठें है॥
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मै ऐसे मोड़ पर हु,
की नही पंख खोल सकता हु
नहीं कुछ बोल सकता हु
अगर उड गये तो पंख कट जायेंगे
और मरे तो कीडों के वास्ते बट जायेंगे॥
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आसमा और जमी को कुछ यूँ बाट दिए गए
कहाँ से देखूँ परिंदे आसमा मे
कुछ पिंजरों में तो कुछ के पंख काट दिए गए ॥
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दर्द उनको मिलता हैं जो दिल से रिश्ता निभाते है ,
वरना आज़ाद पक्षी तो आसमान में नज़र आते है ॥
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सोचा ना था की हम खास से आम हो जायेंगे.।
हमारे उडने वाले पंख भी किसी कैंची के गुलाम हो जायेंगे॥
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खुले गंगन के परिंदे किसी के मोहताज नहीं होते।
वो नये पंख (के खातिर पुराने पंख को काट देने कि हिम्मत रखते हैं।
ग़ालिब मुसिबत के डर से ध्यान हटा कर तो देखो ।
मुसिबत का रास्ता भी निकल आएगा और मजा भी आएगा ॥
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उड़ने का हक हमे भी था,
मगर हम पंख ही गंवाए बैठे हैं,
कोमल मुहब्त कर बैठे तीखे ओजारो से ,
अब पंख कटवाए बैठे हैं॥
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पंखो को काटकर पिंजरे मे जा बैठा हू,
घूमता फिरता हू फिर भी जिन्दा लाश बन बैठा हू ॥
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इन परिंदों की पंख ना काटो साहब,
ये तो उड़ने का जज्बा रखते है,
उड़ते भी वही है जो ,
गिर के उठने का जज्बा रखते है।।
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ये कैंची नहीं दोस्त भरोसे का कत्ले आम है
जिस पर आँख बंद कर किया भरोसा
उसी ने किया मेरा जीवन हराम है ॥
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जिंदगी के इस सफर मे, कभी कभी ऐसे पल आते हैं ,
जब हमें अपने खुदके, पंख काटने पढ़ते हैं,
सपने जो देखें थे, उनसे दूर जाने लगते हैं,
कही ना कही , खुदको हम भूलने लगते हैं।।
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मिले थे पंख आसमान को छूने के वास्ते,
अब खुद ही काट रहा हूँ
अपने पंख घर की जिम्मेदारियां उठाने के वास्ते ।।
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अगर कोई आगे बढ़ना चाहता है
तो उसे रोक दिया जाता है
और अगर कोई मंजिल को पाना चाहता हो
तो उसके पर काट दिये जाते है।।
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ले हौसलों के पंख चल उड़ने की तैयारी करते हैं ,
जुड़े रहे जमीन से आसमां की हिस्सेदारी करते हैं॥
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ऊंची उड़ान ने सारे रिश्तों को बांट दिए,
सबकी खुशी के लिए पर खुद ही काट लिए।।
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अपने अस्तित्व से वाकिफ तू क्यूं अंजान बनता है,
जिस साथी को सीने से लगाए है वही तेरे पंखों का कत्लेआम करता है ।।
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कुछ इस तरह से फंस चुके हैं हम अपने ही बुने जाल में,
अब उड़ भी नहीं पाएंगे आने वाले नए साल में।।
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बुराई दुनिया कि सुनी थीं,
पर गद्दार मेरा यार था।
धागे _धागे को जोड़कर रिस्ता जोड़े बैठा था। ,
मुझे क्या पता मेरे घर में छुपा गद्दार मेरा प्यार था ॥
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हां बिखर जाता हूं कई बार खुद को बनाने में…
जी रूठ गए थे जमाने की बातें सुनकर लगा हूं उनको मनाने में ।।
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मुश्कुराना था पर हम मुश्कुराना न सके।
और गीत खुशियो के हम गा न सके।
उड़ कर सफर तय करना था बहुत दूर का।
कुछ मजबूरियाँ थीं साहब, अपने पैरों को हिला न सके।।
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