पंछी का पर कटकर कहते है ,
की उड़कर दिखलाओ ।
जुबान काटकर कहते है,
की तुम अब गाके दिख लाओ ।।
जिसकी वजह से रुक गई मेरी सास।
वहीं पूछता है कि किसकी है ये लाश।।
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पंखो ने उडना सिखाया
अफसोस अपना होकर चोच ने कैंची का साथ निंभाया॥
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पखं खोलते ही, कुछ पंछी सिहर जाते हैं
कंफस के पंछी यो को पिंजरे ही सुहाते है॥
खत कबूतर किस तरह ले जाए बाम ए यार पर ।
पर कतरने को लगी हैं कैंचियां दीवार पर ।।
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मंजर के हौसले हजार है,
तेरे बिना ये जिंदगी बेकार है।
हम चल पड़े उस मंजिल पर
जिस मंजिल पर अंगारे बेसुमार है॥
पक्षी का पर काटकर कहते है उड़ के दिखाओ ।
सुबह काट कर दुनिया वाले कहते हैं में नाचूँ तुम गाओ॥
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अपनो के बंधन में इस तरह बंध गया
पंखों के होते हुए भी घर में ही खो गया ।
क्या करूं कुछ समझ नहीं आया
इसलिए पंखों को काट अपनी उड़ान को ही खो गया॥
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मेरा भला करते-करते,
मेरे अपनों ने मेरे पंखों को काट दिया।
मेरी सपने मुझसे छीन लिए, मेरी उम्मीदें भी तोड़ दी,
मुझको मुझसे छीन लिया, मेरा दिल टुकड़ों में बाट दिया ।।
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मैं तो नापने चला था आसमान देखना चाहता था सारा जहान
लोगों से ये कामयाबी देखी नहीं गई क्यों कि अपने ही कैंची में लगाए बैठे थे सान॥
अपनी ही उड़ान पर क्यों संदेह कर बैठा,
आसमान का मालिक ज़मीं पर आ बैठा।।
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कटे पंखों से क्या तू क़ैद को गले लगाएगा,
या एक बार फिर तूफानों से टकराएगा।।
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डोर पकड़कर मौन दिख रहा हूं
उतारकर पंखों को मैं कौन दिख रहा हूं
कैंची से पंखों को काटता दिख रहा हूं
मैं तो अपनी मुसीबतों को बांटता दिख रहा हूं ॥
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ये जमाना अपने बारे में क्या सोचा इसने मतलबी बता दिया
सजा रहा था पंखों को अपने इसने काटता बता दिया।।
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वक्त नूर को बेनूर बना देता है
छोटे से जख्म को नासूर बना देता है
कौन चाहता है अपनों से दूर रहना पर
वक्त सबको मजबूर बना देता है॥
थक चुका मैं लिख फरमान अब हाथ कलम से कहते है,
पाला जिसको लिखा जिसको तुने अपना कहके अब वही सांप से डसते है।
मैं थक चुका इस जंजाल से रब रहना नहीं तेरे जहां में अब,
जिसको चाहा वहीं ठुकराया चल अब मौत राह पर चलते है।
साले कैसे बेवकूफ है वह दौलत के प्यारे
एक स्याही के खातिर मुझे मारता देख वह जलते है॥
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कया हुआ अगर पंख कट गये
तू सोचती है कि कभी उड़ ना पाऊंगा ।
तू उड़ान की बात सोड़ मेरी जान
एक दिन तुझे सबसे ऊंचा उड कर दिखाऊंगा॥
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पंछी का पर काट के कहते है उड़ कर दिखाओ ना
जुबा काट के दुनिया वाले कहते कुछ गा कर दिखाओ ना॥
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आंखों में नमी है हाथों में तुमहारे तस्वीर
तुम्हें पा भी नहीं सकते ।
और तुम्हें खो भी नहीं सकते पा भी नहीं सकते ॥
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भगवान तेरी दुनिया में अपने ही,
अपनो के लिए केंची लिए बैठे हैं।
काट रहे हैं पंख हमारे,जो
अपनी इज़्ज़त का ठेका हमें दिऐ बैठे हैं ।।
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इन पंखो का क्या कसूर जनाब
जब अपने ही अपनों का गला काट देते है ।।
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फिर तो ये पंख है उड़ना तो सबकी फितरत है
पर उड़ान इतनी भरो जहां तक उड़ा जा सके
उड़ान तो जटायु के भाई संपाती ने भी भरी थी अपने पर गवां बैठे थे.. ॥
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उड़ने की चाहत बहुत है दिल में ,
जिम्मेदारियों में दबे बैठे है
नही काम के रहे पंख
क्योंकि यहा टांग खींचने वाले बहुत बैठे है॥
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कंबख्त मंजिल को क्या पता मर्जी से ज्यादा मजबूरियों के हिसाब है।
हम उन से जिद कर बैठे जो हमसे भी लाजवाब है॥
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पंख काटकर उसने परिंदा छोड़ दिया
जान भी ले ली ओर जिंदा भी छोड़ दिया॥
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सुकूँन की ज़िंदगी में है मज़ा कहा..
क्यों न रोज़ थोड़ा थोड़ा मर जाए।
काट दिया परो को ताकि शान की,
उदन को फिर्र से बरा जाए ॥
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खुदा की इस तकनीक ने,
मुझे पूरा झकझोर दिया।
एक हाथ मेरा जिंदा था,
लेकिन उसी ने दूसरे को तोड़ दिया।।
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वक्त की पाबंदी शक्तियां खा रेही है
बेवफा के दिलों में वफा कहाँ से आ रही है।
हम तो कंबक्थ तकदीर को को रहे थे ,
मुझे क्या पता एक बेवफा के दिलों से सदा आ रही है ॥
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कितनी अजीब है ये दुनिया
किसी को इतना मजबुर कर देती है।
हम सदा उसी से उम्मीद लगा बैठे दुनिया में
जो ना जीने नहीं देती मरने को मजबूर कर देती है ॥
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उड़ती पतंगे सबको सकून देती हैं,
कम्भख्त ये कौन समझे कि ये उड़ते परिंदों के पंख भी छीन लेती हैं॥
कभी उड़ता था खुले आसमान में
आज बेबस हुआ बैठा हूं
वक्त का करिश्मा तो देखो
अपनी ही बर्बरता की डोर अपने ही मुंह में लिए बैठा हूं॥
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कुछ् करने के लिये दिल में जूनंन।सा भरना।पड्ता है,
हमने पूछा चिडियाँ से घोंसला कैस बनता है,
इतना भी आसान नहीं भाई तिनका तिनका उठाना पडता है॥
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हालात ऐसे है के खुद ही पंख अपने काट लूं
इस मतलबी दुनियां में कोन है मेरा जिससे दुख अपने बांट लूं ॥
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ले काट लिए हमने अपने पर,
जो तेरे घर तक लेकर मुझे आते थे…..
बड़ा गुमान था इनकोअपनी मोहब्बत पर
,मुद्दत का सफ़र लम्हों में कराते थे।।
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मैंने मोहब्बत में वो दिन भी देखा हैं
जब पाँव ज़मीन पर नहीं होते हैं।
और मोहब्बत में वो दिन भी देखे हैं,
जब पाँव तले ज़मीन नहीं होते हैं॥
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मैंने हौसलों की उड़ान भरी थी जिनकी खुशी के लिए ,
वहीं रो दिए मेरी तरक्की के लिए ।
मेरे अपनों ने मुझे गिराने के लिए षड्यंत्र किया,
नहीं लड़ सकता उनसे इसलिए मैं पंख काट दिए॥
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हाथो मे कैंची है कैची मे पंख
हाथो मे कैची है केची मे पंख क्या कहे जनाब
हम है अपनी जिदंगी से बहुत तंग॥
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दरिया ही तो है कुछ रुक रहा है’
कुछ बह रहा है दर्द सबके दिल में है
कोई लिख रहा है कोई पढ़ रहा है॥
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पंख मुझे अब तेरी जरुरत नही
कभी हम भी उड़ने का शौक रखते थे
अब परिवार वाला हू वरना
अच्छे अच्छे हमसे भी खौफ रखते थे॥
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परिंदा जो अपने परों को काट रहा,
क्या उसे खुद से ही कोई बात खल रही है?
उसके उड़ने का सपना, या दर्द कोई छुपा,
जाने क्यों उसकी खुद से ही जंग चल रही है।।
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काट लिया हमने अपना पंख , कर ली है तौबा उड़ानों से,
भीड़ से लगता हैं डर, मोहब्बत हो गई हैं वीराने से।
थक चुके है कुछ इस कदर की डर लगता है किस्मत आजमाने से।।
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ख्वाब उसके दुनिया जितने के थे,
अपने परिवार को साथ लेकर चलने के थे।
वो बातों से थोडा सच्चा था ,
लेकीन सबके नजर मे कडवा था ।
बातें तो उसकी सबको चुभही रही थी,
शायद इसीलिये उसकी किसिके साथ बनती ना थी।
दुनिया से उसे कोइ वास्ता ना था,
पर वो अपनो से हारचुका था ।
दुनिया जीतने की आस अब खत्म होचुकी थी,
वोजो आज खुदके पर काट रहा है वो अपणो किही मेहेरबानी थी॥
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हो जाएंगे दूर सब से मगर आम ना रहेंगे
और काट देंगे खुद के पर मगर किसी के गुलाम न रहेंगे ॥
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पिंजरे में कैद हूं, पर सोच आज़ाद है,
चोट खाई है, मगर दिल आबाद है।।
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कटे हुए पंखों से भी उम्मीद बांधी है,
ए मेरे हंसफ़र धीरे चल आगे तेज अंधी है ।
चाहे कितनी भी तेज अंधी है।
मेंने उम्मीद ही इन तूफानों से बंधी है।।
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जो रोका है उड़ान को, उसे कहानी सुनानी है,
हो सके उतना दम लगा लो ये अंधी नहीं सुनामी है।
हर तूफान को चीर कर निकाल जाएगा ,
ये मेरा बचपन नहीं मोजों पर चढ़ी जवानी है॥
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कुतर रहा हूं अपने पंख ताकि नए पंख आ जाएं
फिर एक दिन ये सबसे ऊंची उड़ान भर पाए॥
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एक गलती हुई जो भारी पड़ी , एक धागे में हम उलझते गए,
जितनी कोशिश करूं मैं उड़ने की यार! उतने ही पर कतरते गए॥
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पंखों को खुद ही काट रहा, ये परिंदा क्यूं उदास है,
आज़ादी के परों को त्यागकर, खुद पर ये कैसा विश्वास है।
शायद दर्द ने सिखाया इसे, सपनों को खोना जरूरी है,
खुद को पराजित कर पाना भी, ज़िंदगी का एक दौर जरूरी है॥
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उड़ता रहता एक तलास मै मे आवारा,
मोहब्बत ने इतने धोके दिए।
नही उड़ना चाहता मे दोबारा।।
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जो पर काटे हैं, वो फिर उगाए जा सकते हैं,
जो सपने रूठे हैं, वो फिर मनाए जा सकते हैं।
हार मानकर बैठा है आज तू जो यहां,
टूटे दिल में भी प्यार के दीपक जलाए जा सकते है ॥
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ना कोई उमंग है , ना कोई तरंग है
मेरी जिंदगी है क्या एक कटी पतंग हैं॥
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खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं,
धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं।
ये कैंचियाँ खाक हमें उड़ने से रोकेगी,
हम परों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं।।
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हम आसमा का म्जाख बना बैठे,
हम नादानी में दिल लगा बैठे
हमे पता है हो जाएगी ज़िंदगी खाख मेरी ।
हम जलते हुए अंगार से दिल लगा बैठे॥
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मुझे उड़ने का शौक तो बहुत था
मगर एक खता हुई सारी खुशी लापता हुई
मुझे उड़ने का शौक तो बहुत था मोह में ऐसे
बंदे तेरे भूल गए कि रात के बाद आते है
सवेरे मुझे उड़ने का बहुत शौक था ॥
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ख्वाब ऐसा दिखाया जो समझ तो आया ,
मगर पूरा न कर पाया मुझे उड़ने का बहुत शौक था ।
सबके साथ अपनी खुशियां बांटते थे मगर वो
हमारे पीछे हमे काटते थे मुझे उड़ने का बहुत शौक था ॥
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एक दिन ऐसा आया कोई अपना नहीं
समझ आया मुझे उड़ने का बहुत शौक था
जिसने अपने हर सुख को यारो से बाटा आज हमने
अपने हाथों से अपने पंखों को काटा मुझे उड़ने का बहुत शौक था ॥
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एक पहर बजा मंदिर में शंख
अब कैसे आऊ बताओ भगवान न शौक रहा न पंख॥
हाथो मे कैंची है कैची मे पंख हाथो मे कैची है केची मे पंख
क्या कहे जनाब हम है अपनी जिदंगी से बहुत तंग॥
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बांध लिया है मुझे रस्सियों ने आज,
पर ख्वाबों में अब भी है उड़ान का राज।
कैंचियां रोक सकती हैं परों को मेरे,
मगर हौसले को नहीं कोई रिवाज़।।
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जब भी तुम्हारा हौसला,
आसमान तक जायेगा
याद रखना कोई न कोई
पंख काटने जरूर आएगा॥
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अपने ही पर कतरे हैं ज़माने के बनाए उसूलों से और कहते हैं
ज़माना उड़ने नहीं देता कोशिश करो, सब्र करो, शुक्र करो खुदा का
माँग कर तो देखो वो क्या क्या नहीं देता ॥
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खुशबु बनकर गुलों से उड़ा करते हैं,
धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं।
ये कैंचीयां खाक रोकेगी हमे उड़ने से,
हम पंखों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं ll
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जिंदगी कुछ इस तरह उलझी है,जनाब
प्यार को पकड़ा तो नौकरी गई ,
नौकरी को पकड़ा तो परिवार गया ॥
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उड़ने का सौक तो बहुत था हमै मगर
जिम्मेदारीयो की लाठी ने हमे अंधा बना दिया ।
सोचा पंख काट के लौट जायें अपने पिंजरे मे
क्या करू मेरे हालात ने मुझे परकटा परींदा बना दिया॥
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उड़ना था आसमान पर जमीन पर गिरे ,
मिली थी नजरें हम उन पर मर गए,
हमे क्या पता था वो इतने मजबूर है जिदंगी से
उनकी मजबूरी देखकर हम, जीते जी मर गए ॥
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सपने खुले आसमान में उड़ने के थे ,
परों को बांधने वाले हमारे अपने थे।
हम कर सकते थे शिकायत उंनकी
लेकिन क्या करें जनाब , हमे आसमान में उड़ाने के भी सपने उनके थे॥
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एक खुला मकान भी न मिला
ख्वाब आँखों में बहुत थे
सपनो को सहारा न मिला
बार बार गिर के उठते उठते थक गए थे
क्युकि अपने ही पंखो का साथ न मिला ॥
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खुदगर्जी के चलते मैंने परिवार को बटते हुए देखा है..
. और तो क्या ही कहु मैंने खुदके हाथों अपने पंख कटते हुए देखा है ॥
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जाना चाहता था मंजिल पे तेरी, रहो में इतने काटे थे
तेरे इस्क में मैंने अपने पंख काटे थे।
सोचा था बिना पंख के हम सिर्फ तेरे होंगे।
हम जिसे बेवफा कहें वो दोस्त मेरे होंगे ॥
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दुर है हम आपसे तो कुछ गम नहीं
दुर रहके भी भुलने वाले हम नही
रोज मुलाकात ना हुआ तो क्या हुआ
आपकी याद आपकी मुलाकात से कम नही॥
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हालत ए दिल सुना नहीं सकते
आसामान पे हे मंजिल दिखा नहीं सकते,
मिला तोहफा एहतेबार का अब कटे बाजू दिखा नहीं सकते ।।
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यह किस कश्मकश में फंस चुकी हु मै, अब लगता है थक चुकी हु मैं ।
न उड़ पा रही हु और न ,अपने पंखों को कुतर प रही हु मै॥
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लेकर प्यार हमारा सब में बांट दिया
हमने हाथ से अमीदो को काट दिया।
हम भी आजादी से उड़ना छहते थे,
जालिम में जानु कहकर डांट दिया॥
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हालत ए दिल सुना नहीं सकते
आसामान पे हे मंजिल दिखा नहीं सकते,
मिला तोहफा एहतेबार का
अब कटे बाजू दिखा नहीं सकते।।
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यह किस कश्मकश में फंस चुकी हु मै,
अब लगता है थक चुकी हु मैं ,
न उड़ पा रही हु और न अपने पंखों को कुतर प रही हु मै॥
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उम्र का हर पल कुछ इस तरह काटा है,
अपने ही वजूद को कई टुकड़ों में बांटा है।।
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हम अपनी ही जबान से, पंखो पर कैची लगाए बैठे हैं।
वो तो पैरो ने थाम्भा है, वरना हम अपनी जान गवाये बैठे हैं॥
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लगी तो प्यास पर समाज ने पानी पीने नहीं दिया
रहेना चाहता ता अपने परिवार के साथ पर समाज ने जीने नही दिया॥
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कहीं मेरे हाथ शरीर से बट न जाए उड़ने की ताकत कहीं घट न जाए
इसलिए भी नहीं छोड़ता इस डोर को डर है छोड़ दिया तो पंख कट न जाए ॥
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इतनी बेरहमी से गिराया आसमां से जहां वालों ने
खुद ही अपने पर कतर लिए उड़ान वालों ने।।
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कत्ल हो जाना चाहता हु, पर कोई कातिल नहीं मिलता
कोई दिल से नहीं मिलता, तो किसी से दिल नहीं मिलता।।
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