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लाचार परिंदों से संबन्धित शायरी Parinde shayari collection +150

पंख काट कर परिंदा छोड़ दिया ,

जान लेकर जिन्दा छोड़ दिया ।

हमे भी जीने की तमना इस जमाने में

लेकिन लूटे दिल में प्यार का दीपक जलाकर छोड़ दिया ॥

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मेरे हौसलों में उड़ान तो बहुत ऊंची थी ,

मगर कड़वी जुबां ने पंख कटवा दिए।

सच बोलने की हमे ऐसी सजा मिली ,

की अपने ही प्यार ने मेरे अरमा जला दिये॥

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ये पंख है आजादी से उड़ान के लिए,

इसे ना काटो बंद कमरे मे रहने के लिए,

उड़ान भरने दो मुझे भी उडने दो मुझे भी,

मेरा भी जीवन है किसी हमसफर पर मरने के लिए॥

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हम अपने ही पंख काट लिये

जब उन्हें दूसरे के साथ उड़ते देखा ।

हम एक जिदना लाश बन गए,

जा अपने सपनों का घर आंखो के सामने उजड़ते देखा॥

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इश्क़ के परिन्दों की ये कैसी रुसवाई है

काटकर खुद ही अपने पंख जान गँवाई है.

मरकर भी चेन ना मिला मुझे ,

इसलिए हमने साथ में अपने अरमा की कुटिया भी जलायी है ।

की ख्वाब जहा पलते है मेरे नजर वहा तक रखता हु

पांव जमीन पर है मेरे नजर आसमान में रखता हु॥

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उड़ने की चाह तो हमे भी हैमां ,

बाप की जिमेदारी सिर पर रखा है।

 सब कहते तुम कितने अच्छे हो अच्छे

 कियू ना हो खुद ही अपने पंख काट रखा है॥

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हमने सबको उड़ता देखा

 हमने भी उमीद लगाई थी ।

जब आईं हमारी बरी तो जिम्मेदारी के चलते

हमने अपने पंखों पे कैंची चलाई थी ॥

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मैंने छोड़ दिए वह काम जो सपनों में नहीं आए ।

और मैंने छोड़ दी वो रिश्ते जो अपनों के काम नहीं आए॥

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किस कदर झूम उठी हूं मै ये सोच कर

कि हौसलो का परिंदा हूँ,

उड़ रहा भी हौसले पर ,

और हौसले के पंखों पर ही जिंदा हूँ ॥

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उड़ना तो मैं भी ऊँचा चाहती हूं जनाब ,

 उड़ना तो मैं भी ऊँचा चाहती हूं जनाब !

लेकिन घरवालों ने मेरी जिंदगी की डोर पकड़ रखी हैं,

घर की ज़िम्मेदारी ने मेरी आदि जकड़ रखी है ॥

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और ना चाहते हुए भी मैंने अपने आजादी

के पंख खुद ही काट दिए हैं!

अपने दुश्मनों में मैंने अपनी बरबादी का न्योता बाँट दिये ।

कर लो अपने दिल की सारी हरसते पूरी , अब मेंने खुद ही अपने पर काट दिये॥

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खोल दे पंख मेरे : कहता हैं परिंदा ,

अभी और उड़ना बाकी हैं ।

जमीन नहीं है मेरी मंजिल ,

अभी पूरा आसमान बाकी हैं॥

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खुद ही काटे हैं पर अपने, कोई और कसूरवार कहां था,

खुद ही भुगत रहे हैं अपने कर्मों की सज़ा, कोई और गुनहगार कहां था।।

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जिसकी जैसी सोच वैसी कहानी रखता है

कोई परिंदों के लिए बंदूक तो कोई परिंदों के लिए पानी रखता है ॥

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हम कंकड़ है जिंदगी की राहों के,

हीरे की कदर एक जोहरी है परख्न्ता है॥

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लोगो ने कहा की कुछ नहीं कर सकते है,

 दोनो हातो की क्या जरूरत एक ही हात हे हराऐंगे।

हमारे होसलो मे इतना दम है जानाब

की पंख काटकर भी उॅंडकर दिखाऐंगे॥

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अपनी चोंच में अपनी मौत की डोर….

और हाथो में अपनी बर्बादी का खंजर ले के बैठा हूँ…

चलाऊ जो हाथ या पैर…..

अपनी नाकामी का मंजर ले के बैठा हूँ।।

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हम तो वो पन्छी है जनाब ,

जिनके हौसले बुलंद् है।

हम भी जी लेते अपनी ज़िदगी सान से

लेकिन ज़िंदगी के पल छंद है ॥

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हम तो उड़ कर आसमान भी नाप ले

लेकिन घर के जिम्मेदारियों से पंख कटे है।

हम भी जी सकते थे अपनी मरमरजी का जीवन

अपनों का प्यार पाने के लिए एक दरिया में डटे है॥

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चाँद से रोशनी ज्यादा और सितारों से कम निकले,

जब भी मैं तुझे देखूं मेरा हँस हँस के दम निकले।।

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क्या गैर अपना कुछ बिगाड़ा है और

बिगाड़ेगा ये तो दूर की बात है,

हमने तो अपने ही आसियाने उजाड़े है ,

जनाब ये तो एक मगरूर की बात है।।

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कि कट देते हैं पंछी वो पंख

जिन्हों ने उन्हें उड़ना सिखाया ।

और इस दुनिया में अक्सर बही लोग जमी पर गिराते हैं

 जिन्हों उन्हें चलना सिखाया ॥

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भगवान तेरी दुनिया में अपने ही,

अपनो के लिए केंची लिए बैठे हैं।

काट रहे हैं पंख हमारे,

जो अपनी इज़्ज़त का ठेका हमें दिऐ बैठे हैं ।।

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खुद के जीवन पे औजार चला रहा हूं,

दूसरे से प्यार करके खुद के किस्मत को बर्बाद करा रहा हूं ,

चाहत मेरी थी आश्मणो में उड़ने की ,

इन लोगों की नीयत देख खुद के पंख काट रहा हूं।।

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कदमों को थाम पंखों को सिल लिया मैने

मैं औरत हूं साहब सब रिश्तों को ख़ुद में समा लिया मैने॥

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मेरे उड़ने से वो दुखी है तो मैं खुशियां बांट देता हु

 उनकी खुशी के खातिर मैं अपने पंख काट देता हु ।।

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खुद ही थाम बैठा हु औजार अपनी बर्बादी का ।

काट दूं पंख अपने या खींचूं डोर आजादी का।।

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कफन में रहते हुए होगी सायद से उल्फत मैं

खुद ही नोच लेता हु जब मेरे पर निकलते है

घोट लेता हूँ अपने अरमानों का गला गलफत में

जब मेरे जज़्बात मचलते है॥

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उनसे चाह की मुझे आजमाने की.,

 मैं बन बैठा मुरखनादान और ओ लिए फिरते है,

तसरीफ झूठे नजराने की., मैंने बांधकर पैरो में फंदा.,

और उठाकर कैंची मिटा दी हस्ती.,

 आसमां को चीरने वाले परवाने की ॥

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लाख कमियां गिना कर मुझ में

 मेरे पंख काटने को वो बैठे हैं तैयार।

खुद के अस्तित्व को बचाने की उम्मीद में डोर दबाए

बैठा हूं मैं , खुदा तेरे दरबार।।

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बेजुबान उड़ कर आसमान में भी इंसान के मोह में कैद है

देख रहा है अपने पंख काट कर क्या वो भी चालबाज इंसान की तरह तेज है॥

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मेरे पंख काटने का मौका भी मुझे ही दिया

जिनसे मैंने दुनिया देखी मैंने उन्हें ही खो दिया ,

अब तो खुश होगे ये देखकर जिनसे मैंने

उड़ान भरी आज मैंने उन्हें ही खो दिया ॥

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जो बाहर की सुनता है, वो बिगड़ जाता है।

जो अन्दर की सुनता है , वो सवर जाता है

खुद ही थामे बैठा हूं, औजार अपने बर्बादी का,

काट दू पंख अपने, या खींचू डोर आजादी का..

लोग काटकर पंख परिंदो के, जोर अपना दिखाते हैं।

पर होता है हौंसला जिनका बुलंद,

वो उड़ना ना सही पर दौड़ लगाते हैं।।

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लांघ जाऊ सात समंदर इतनी ताकद मुझमे बाकी हे,

हौसले हे आसमान छुने के लेकिन कायनात नहीं राझी हे।

पर कैसे छोडू वो आशियाना,

जिसमे कुछ नन्हीं आँखे मुझे ताक रही हे ।

इन परोनपर अभी कुछ तितली्योंकी उड्डाणं कि जिम्मेदारी हे॥

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दिल में हैं आजादी की शोर

कम्बख्त पैरों में बंधे हुए हैं डोर!

हम थे जिस वत्क दीवाने उनकी हाथो में थी हमारी डोर

आज हमे कौन पूछता है जनाब, वो समय अलग था

आज है नया दौर ॥

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फलो से भरे पिंजरे के तोते से लाख गुना बेहतर है

 वो पंछी जो भूखा है पर आजाद तो है॥

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ना समझ रहे थे ना संभल रहे थे,

खुद्को ही चोट पोहचा रहे थे,

पता नही था की खुद्से ही है परेशान,

 और हम इस जग को कोस रहे थे ।।

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नजरें तो थी आसमान की तरफ,

 चाहते थे हम भी उड़ना,

मग़र काट दिए वो पंख जिससे ,

अपनो को तकलीफ होती थी॥

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” टूटे हैं पंख मगर एक उड़ान बाकी है

ख़त्म हुआ हूं नहीं कि अभी जान बाकी है अग्निपरीक्षाओं से सत्य रोज़ गुज़रेगा

 जब तलक सफेद झूठ का जहान बाकी है किसपे विश्वास करें ।

और किससे मशविरा कैसे करें पता कि ईमान कहां बाकी है

लिस्ट में एहसानों की कई नाम कट गए बाकी हैं कई जिनके नाम वहां बाकी है ।

कभी-कभी लगता है बदलेगा कुछ नहीं जब तलक कि नफ़रत की वो दुकान बाकी है

गिर गई हैं दीवारें खंभे बने खंडहर पगला सोचता है कि अब भी मकान बाकी है ख़त्म हुआ हूं,

 नहीं कि अभी जान बाकी है टूटे हैं पंख मगर एक उड़ान बाकी है॥

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इस दिल में कुछ कह ने के लिए तो है,

 नहीं पर क्या करे ,ये जिंदगी उड़ने की तलाश में रहती है

कभी सोचती हूं कि कुछ ऐसा कर दिखाऊं ,

इस आसमान के पार जाऊं  इस आसमान में उड़ने की ख्वाहिश है ॥

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जिसको संभाल कर रख था अपने सीने में ।

 उसी ने काटा यारो मेरे पंख क्या छोड़ा जीने में।

हमने बहुत संभाल रखा था कदम फिर भी,

सक करती है बात बात पर, क्या मजा ऐसा जीने में ॥

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जिंदगी जीने आए थे जिंदगी का किस्सा बन गए ।

खुली आंखों से सपने देखे थे जमीन से आकाश तक

 उड़ने के हम भी बेवकूफ इंसानों का हिस्सा बन गए।।

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 किसी ने अपनाया तो नही लेकिन सबने

ठुकराया मुझे आंखो मे आंसू लिए बैठा था,

मोड़ लिया हाथ में रस्सी को लेकर में अपनो को भूल गया।

 बना के फंदा फासी का में हस्ते हस्ते झूल गया ॥

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और फिर मुझे कुछ इस तरह आजमाया गया,

 पंख काटे गए और आसमा में उड़ाया गया ॥

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जिंदगी जीने आए थे जिंदगी का किस्सा बन गए

खुली आंखों से सपने देखे थे जमीन से आकाश तक

 उड़ने के हम भी बेवकूफ इंसानों का हिस्सा बन गए ।।

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किसी ने अपनाया तो नही लेकिन सबने ठुकराया ,

मुझे आंखो मे आंसू लिए बैठा था ।

लोगो ने रुमाल की जगह कफन दिखाया मुझे ,

में वहाँ जीने की आस लगाए बैठा था॥

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हाथ में रस्सी को लेकर में अपनो को भूल गया ,

बना के फंदा फासी का में हस्ते हस्ते झूल गया ॥

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ज़माने में हमें बर्बाद करना किस के बस की बात थी।

हम प्यार की पहली सीढ़ी पर थे, और हमारे की वो पहली बरसांत थी।

पहली मुलाक़ात में हमे ऐसी चोट लगी, की हमारे जीने की ये पहली सौगात थी॥

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हालातों ने कतर डाले पर हमारे ,

वरना हम भी आसमान में उड़ा करते थे ।

लिपटकर गले हम भी रोना चाहते थे,

लेकिन वक्त कहाँ साथ देता है।

वरना हमे भी तुम्हारी आँखों में प्यार के

आँसू बनकर छलकना चाहते थे॥

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हवाओं से कहो कि खुद को आजमा के दिखाए

 बहुत चराग बुझाती है इक जला के दिखाए ॥

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मैने अपने हाथों से अपना घर जलाया है।

 जब से अपनो से धोखा खाया है ॥

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चलो हम अपने प्यार को एक पंछी बना लें

जिसके हम दो पर हो जाएंगे

अगर कट जाए एक भी पर तो

 हम उड़ नहीं पाएंगे।।

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तुमने खेत खलियान सब अपने हिसाब से बांट लिए

 हरा,भगवा,हिंदू, मुस्लिम, गाय सूअर अपने -2 छांट लिए

अब उड कर देखना क्या इस जहान में

ये सोच सोच कर इक परिंदे ने अपने पर काट लिए॥

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ये तस्बीर क्या खूब सिखाती है कि कट देते हैं

 पंछी वो पंख जिन्हों ने उन्हें उड़ना सिखाया

 और इस दुनिया में  अक्सर बही लोग जमी पर गिराते हैं

जिन्हों उन्हें चलना सिखाया॥

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खुद ही थामे बैठा हूं,  औजार अपने बर्बादी का,

काट दू पंख अपने, या खींचू डोर आजादी का॥  

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पंख काट रहा हूँ अपने कोई

इतनी भी बड़ी बात नही

मेरे न होने से अगर तू खुश है तो पागल

मेरा मरना भी इतनी भी बड़ी बात नहीं ॥

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मैने इस जहां को आसमान समझा

और उसे अपनी जगह मान लिया

 पर क्या पता था हमारे अपने ही हमारे पंखों को

 कांट ने के लिए वो कैंची लेके बैठे हैं ॥

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ऐ जिंदगी तूने सलाखों के पीछे क्यों छोड़ दिया,

जिंदगी भी ले ली और जिन्दा भी छोड़ दिया ।।

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जब रोकना ही था आसमां की ऊंची उड़ान से,

तब पंख देकर क्यों इस संसार में छोड़ दिया ।

 यदि तूने दो हाथ देकर मुझे कैद किया होता,

तो मैं फांसी लगाकर तुझे छोड़ दिया होता ।।

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हम लड़कियां अपने पंख खुद ही काट लेती हैं

 पंख हो भी तो दुनिया हमे कहा उड़ने देती है

देती है दिन रात ताने हमे, सुख चेन चीन लेती है।

ए जिंदगी तू हमसे कौनसे जन्म का बदला लेती है॥

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लांघ जाऊ सात समंदर इतनी ताकद मुझमे बाकी हे |

 हौसले हे आसमान छुने के लेकिन कायनात नहीं राझी हे ||

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हम चले थे उड़ने को पता नहीं

 परों को कैंची कौन लगा गया।

 आप को एक बात और बता दूं

कि बो कैंची की रसी वी हमें पकड़ा गया।।

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अपने ही पंखों को काटता पंछी,

आसमान का सपना त्यागता पंछी।

 मजबूरियों के बंधन में जो जकड़ा,

अपनी ही उड़ान को भाग्य मानता पंछी।।

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आसमान मै उड़ने का हुनर तो खानदानी था

साहब पर वक्त और हालात ने इस कदर मजबूर किया

कि हमारा हुनर ही हमारा दुश्मन बन गया॥

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क्या खूब लिखा है किसी ने कि उड़ने से

पहले ऊंचाई का पता लगा लेना चाहिए ।

कि उड़ने से पहले ऊंचाई का पता लगा लेना चाहिए

 और जो पंख उड़ते समय गिरने वाले हो उन्हे पहले ही हटा देना चाहिए॥

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उडणा तो हंभी जाणते थे,

बादलोके उपर, पर तुम जमीन पर

रेहणा पसंद करते थे,

इस्लिये हम भी अपने पर काट बेठे,

आपके एक इशारे पर॥

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हम भी बर लेते उड़ान पर.

 अपनो के आगे हार मै बैठा हु।

 किस्मत नहीं दुनिया जान बैठा हु

 जीत लेता जग को मै पर

अपने ही परो को काट बैठा हु॥

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वक्त ने ऐसे मोड पर ला कर रख दिया है,

खीच दु दोर अपने सपनो की तो अपने ही कट जाते है।

 और रख दु अपनो पास तो

 खुद सपने बेघर हो जाते है॥

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पंख काटकर उसने परिन्दा छोड़ दिया,

 जान भी ले ली और जिन्दा छोड़ दिया॥

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अपने ही हाथों में थाम लेता है औजार।

अरे पंछी जब तू बेबफा लोगों से करने लगता है प्यार॥

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न खुला मौसम, न खुला आसमान,

 हर तरफ हर जगह, इंसान हमे अब मात देते है,,,

शायद कोई बाजूद नहीं रहा अब हमारा,

चलो आज ये पंख भी काट देते है॥

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पंख काटकर अपना मैं बैठा हूं,

 तू भी क्या याद रखेगी मैं कैसा दरिन्दा हूं ।।

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काट लिए उस परिंदे ने पंख अपने इंसानों की बस्ती देख कर

यहां बीच रास्ते में छोड़ दिये जाते है रिश्ते-नाते ऊंची उड़ान देख कर॥

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जो सफर की शुरुआत करते हैं,

वहीं तो मुश्किलों को पार करते हैं।

एक बार दिल से कदम तो बढ़ाओ मेरे दोस्त,

 आप जैसे मुसाफिरों की तो राहें भी इंतजार करते हैं।।

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समझते थे उस्ताद अपने आप को ठोकर खाई तो पता चला ।

उड़ान भर सकते थे हम भी बहुत ऊंची कम्बक्त ये जुबान इतनी चली न होती।।

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लगी है अब तलप यूं ही खुद को मिटाने की ,

 देख नहीं पा रहे ये घड़ी उसके दूर जाने की।

सोचा था जिसे पाकर आसमान में उड़ने को ,

यकीनन अब परों को काट हैं इच्छा डूब जाने की॥

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बड़े बड़े सपने मैंने भी देखें थे

उड़ने,के कइ ख्वाब जनाब,

 पर अपने ही हाथों काट बैठा

 अपने किस्मत के, पर जनाब ।।

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एक पक्षी के दर्द का फसाना था टूटे हुए थे

पंख फिर भी उड़ कर जाना था

उसी रात एक तूफान भी आना था तूफान तो बह झेल गया,

 हुआ एक अफसोस बह डाल टूटी जिस पर उसका आशियाना था॥

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लोग काटकर पंख परिंदो के, जोर अपना दिखाते हैं।

पर होता है हौंसला जिनका बुलंद, वो उड़ना ना सही पर दौड़ लगाते हैं।।

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सोचा था जो ख्वाब आज तक,पा लिया वो तेरे दम पर,

अब तुम साथ क्यों नहीं दे रहे!!!

 बढ़ना तो है मेरी फितरत, ढूंढ रहा हूं साथी तुम सा,

परों पर कैची पैर में पकड़ कर मुंह में डोरी

थामे हुए हूं…,खीच लू???या छोड़ दू???, पर तुम जवाब क्यों नहीं दे रहें ॥

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भरकर यूं उड़ान मुझे आसमा से जमीन नहीं देखनी…

ये दुनियां बहुत ज़ालिम हैं बेदर्दी है मुझे ये दुनियां नहीं देखनी…..

पंखों की उड़ान पर हुई बेइज्जत नारी…

अब बनना नहीं पापा की परी, ये नारी बनेगी शेरनी….

. ये दुनिया बहुत ज़ालिम है बेदर्दी है मुझे ये दुनियां नहीं देखनी।।

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पंख कटे तो क्या हुआ, हौसला नहीं मरा,

 जमीं से आसमान तक, रास्ता हमने खुद गढ़ा।।

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उड़ने का सपना देखा था, अब जमीं को अपना ठिकाना बनाया है,

पंख छूटे मगर जज्बा नहीं, हर दर्द को हमने गले से लगाया है।।

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 चले थे ऊंचाई छूने, मगर गिरकर फिर संभल गए,

 पंख टूटे तो क्या हुआ, हर गिरकर भी संभाल गए॥

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आसमान तो छू लिया था, मगर जमीं ने बुला लिया,

पंखों के बिना भी हमने, हर ख्वाब को सजा लिया।।


कट गए पंख, मगर आवाज बाकी है,

ख्वाब टूटा, पर आज भी परवाज बाकी है।।

मेरी उड़ान तुझसे थी,

तेरे बिना उड़ के क्या करूंगा।

अब तू ही न रही मेरी जिंदगी में,

 तो इन पंखों का क्या करूंगा।।

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पंख टूटे पर उम्मीदें की नई रवानी है ,

हर दर्द में छुपी नई कहानी है।।

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पंख कटे तो क्या हुआ, उड़ान की आदत है,

सपनों को पाने की, अपनी जिद्दत है।।

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कट गए पंख तो जमीं से प्यार कर लिया,

जो था दूर, उसे अब अपने पास कर लिया।।

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पंखों का टूटना भी एक पैगाम है,

उड़ने के लिए दिल का होना बहुत बड़ा काम है।।

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पंख कटे हैं मगर हिम्मत जिंदा है,

 हर दर्द के नीचे एक खुशबू छुपी है।।

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चंद लफ्जो में सिमट गया किरदार हमारा ,

ये आसमा भी तय न कर सका अंजाम हमारा,

यू तो कहने को हम पंछी गए गए

,गर न गड़ा होता ऊपर बाले ने ये रूप हमारा॥

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उड़ ना जाए कही इसीलिए अपने पंखों को काटने बैठे है।

उनकी याद में खुद उजाड़ बैठे ।

 उम्मीद ना थी उनसे की ऐसा करे वो

अब उनकी तलब में खुद को आग लगाए बैठे ।।

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मैं अपने सारे दुखों से सिमट जाऊ भयानक दुनियां हो गई है

 कहीं किसी के हाथ लग न जाऊ

 और ये दुनिया हमे कैद करके खुशियां मनाती हैं

 इससे अच्छा हैं मैं ख़ुद ही निपट जाऊ॥

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मेरे उड़ने से जो दुखी हैं उन्हें खुशियां बाँट देता हूं,

उनकी खुशी के लिए अपने ही पंख काट लेता हूं।।

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कैसे कहु की मै आज़ाद हु ,

कैसे कहु की मै आज़ाद हु

 इन बेदर्द दुनिया मे जिम्मेदारी इतनी है

 की मा बाप को देखे या फिर अपनी आज़ादी ।।

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चहाता था मे उसे अपने जान्सेभी जादा

लुटा दिथी मेने मोहब्बत सारी सोचा था ,

हर खुशी दुंगा उसे अपने दिल

की रानी बनाके रहकहुगा उसे था।।

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काट देते है वो पंख जिसने हमे उड़ान दी छोड़ देते वो

 रिश्ते जिसने हमे पहचान दी बिना

उसके कुछ कर भी न पाते वो

 न होती तो दुनिया में न आते॥

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उड़ना चाहती थी लेकिन कही कैद ना हो जाऊ इस संसार में,

 कोई छुड़ाने वाले आए, मे बैठी हु इन्तजार में,

आज़ाद होने को हु बेकरार मे,

कैद में जीने से अच्छा है अपने पंखों को कटने को हु तैयार मैं।।

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दुनिया के बहकावे मे कभी मत आना

क्योंकि ये दुनिया है तुम्हे नीचे हि गिराएगी

 अपने सपनो की उड़ान तुम्हे हि लगाना है .

एक दिन कामयाब होकर आसमा तक जाना है ॥

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मत छोड़ो अपने सपने की डोर को वरना दुनिया

 वाले तो तैयार हि बैठे है तुम्हे नीचे गिराने को। …

 ये तो परिंदा है जनाब ये किसको अपना दुख

बाताएगा यहाँ तो अपने हि मुँह मोड़ बैठे हैँ॥

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कब तक थाम के रखूं डोर रूपी मतलबी रिश्ते को

 अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए ।

कमबख्त वो ही रिश्ते मजबूर कर देते है कैची बनकर,

 उड़ान रूपी पंख काट हमें नीचे गिराने के लिए ।।

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देखे थे हमने भी अपनो के साथ जीने के सपने ,

फिर चली जो रिश्तों पर कैंची तो देखा ,

 जो चली वो कैंची भी अपनी ओर जो कटे वो पंख भी अपने॥

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एक फूल बार बार नहीं खिलता ,,

और ये जन्म बार बार नहीं मिलता।

उड जाऊ तो असमा पैर के नीचे रख दु

 दौड जाऊ तो हार को पीछे रख दु

दिल तेरी यादो की डोर से बंधा है

 वर्ना सिने की एक चिंगारी से दुनिया जलाके रख दु.॥

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